सुधाकरे स्वच्छतनुत्वभाजं स्वर्णोपवीतित्वमुपैतिवासम् ।
प्रवर्तयन्तं हरिभक्ति - - योगं श्रीनारदं तं शरणं ब्रजामि ।।
भक्ति-ज्ञान-वैराग्य प्रभृति समस्त साधनों का समस्त लोक-लोकान्तरों में सर्वत्र उपदेष करते विचरण करने वाले, कीर्तन कला-विषेषज्ञ, वीणाधर देवर्षिवर्य श्रीनारदजी महाराज के नाम को कौन नहीं जानता! आपका पर दु:ख दु:खित्व भाव बहुत प्रसिद्ध है। भगवत्कृपा से आपकी सर्वत्र अबाध गति है। आप सभी जीवों पर समान भाव रखते हुए सबका हित चिन्तन किया करते है।
आपने श्रीहंस वंषावतंस ब्रह्मपुत्र श्रीसनत्कुमारजी से पंचपदी ब्रह्मविद्या अष्टादषाक्षरी श्रीगोपालमन्त्रराज की दीक्षा ग्रहण कर लोक में सर्वत्र वैष्णव धर्म की विजय पताका फहराई। ध्रुव-प्रह्लाद आप ही के कृपापात्र थे। दक्ष प्रजापति के हर्यश्व एवं सबलाश्व नामक सहस्राधिक पुत्रों को आपने दिव्योपदेश प्रदान कर सृष्टि रचना विषयक कर्म-बन्धन से छुडाकर निवृत्ति-पथ-परायण बनाया। इसी प्रकार प्राचीन बर्हि राजा को भी हिंसात्मक कर्मों की ओर से हटाकर भगवद्भक्ति की ओर प्रवृत्त किया। तात्पर्य यह है कि अहर्निश आपका भगवद्गुणगान तथा परोपकार में ही समय व्यतीत होता था।
महर्षि वाल्मीकि तथा श्रीकृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को संक्षिप्त रामचरित एवं चतु:ष्लोकी भागवत का ज्ञान कराकर वाल्मीकि रामायण और श्रीमद्भागवत जैसे अनुपम ग्रन्थों का निर्माण करवाना आदि जिसके आप ही मूल प्रेरक व पथ प्रदर्शक है। व्रजमण्डल मेें जाकर श्रीगोवर्धन के समीप श्रीअरुणाश्रम में श्रीचक्र सु्दर्शनावतार श्रीनियमानन्द ( श्रीनिम्बार्क ) को आपने ही श्रीसनकादि मुनिजनों द्वारा संप्राप्त पंचपदी ब्रह्मविद्या श्रीगोपालमन्त्रराज की दीक्षा प्रदान कर सनकादि संसेव्य भगवान् श्रीसर्वेश्वर प्रभु की सेवा समर्पण की थी। आप सभी शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता है। श्रीसनकादिकों के पूछने पर आपने बताया था कि - - "मैंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, इतिहास, पुराण, वेदविद्या, ब्रह्मविधा भूतविद्या, सर्पविद्या और देवयजन विद्या आदि सभी विद्यायें पढी हैं, फिर भी हे महर्षे ! न जानें क्यों चिन्ताग्रस्त हूॅं। अत: आत्मषान्त्यर्थ आपकी शरण में आया हूॅं अतः आत्मशान्त्यर्थ आपकी शरण में आया हूँ ।"
देवर्षि श्रीनारद के इस कथन से हमको यह भी शिक्षा मिलती है कि - श्री हरिगुरु परायण (शरणागत) हुये बिना अर्थात् भगवद्भक्ति बिना चाहे जितनी विद्यायें पढकर ज्ञानी बन जाओ, पर वास्तविक शान्ति प्राप्त नहीं होती।
आपके द्वारा रचित अनेक शास्त्रों में ’’श्रीनारद पंचरात्र’’ व ’’श्रीनारद-भक्ति-सूत्र’’ प्रधान है। आपका पाटोत्सव दिवस मार्गषीर्ष शुक्ल व्यञ्जन द्वादषी तिथि माना जाता है।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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