google.com, pub-8916578151656686, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Nimbark Sampraday History

Nimbark Sampraday History

     
Nimbark Sampraday || निम्बार्क सम्प्रदाय 


वैष्णवो के चार प्रमुख सम्प्रदाय है जिनमे सबसे प्राचीन सम्प्रदाय है द्वैताद्वैत सम्प्रदाय , जिसे भगवान विष्णु के 24 अवतारो मे से एक भगवान हंस ने प्रारंभ किया , इसी सम्प्रदाय के चतुर्थ आचार्य 'निम्बार्क भगवान' ने परम्परा प्राप्त इस सम्प्रदाय को अपनी प्रतिभा से उज्जवल व प्रसिद्ध किया इसलिए द्वैताद्वैत सम्प्रदाय आगे चलकर " निम्बार्क सम्प्रदाय " के नाम से प्रसिद्ध हुआ |
आप सभी भगवद भक्तो का स्वागत है निम्बार्क सम्प्रदाय की पुनित कथा मे हम प्रयास करेगे की आपको निम्बार्क सम्प्रदाय का सामान्य एवं गूढ़ ज्ञान प्राप्त हो....
     
               श्रीमद्हंस समारभ्य सनकादिक मध्यमाम्
               अस्मदाचार्यपर्यन्तं   वन्दे    गुरु   परम्पराम 
       
      बात उस समय कि है जब महाभारत का युद्ध अपने अंतिम चरण मे चल रहा था , भीम व दुर्योधन का गदा युद्ध चल रहा था | दुर्योधन कोई और नही अपितु साक्षात कलियुग का अवतार था भगवान कृष्ण के कहने पर भीम ने दुर्योधन की जंघा पर वार करके उसे मृत्यु के मुख मे भेज दिया , मरते मरते कलि रुप दुर्योधन भगवान श्रीकृष्ण से बोला हे कृष्ण ! "आज तो तुमने मुझे मार दिया है लेकिन कुछ समय बाद मेरा समय ( कलियुग ) आएगा तब मैं तुम्हारे भक्तो को दुख दुंगा अधर्म बढाऊंगा और तुम कुछ भी नही कर पाऔगे "।
    महाभारत युद्ध समाप्ति के 36 वर्ष बाद आज से लगभग 5100 से अधिक वर्ष पुर्व कलियुग का प्रारंभ हुआ | ये कलयुग इस वाराह कल्प मे ब्रह्मा जी की आयु के उत्तरार्ध ( द्वितिय भाग ) मे 28 वॉ कलियुग है , इससे पुर्व भी 27 कलयुग आ चुके थे |
    28 वें कलियुग ने तो आते ही द्वापर युग मे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा संस्थापित धर्म की मर्यादा को समुल नष्ट ही कर दिया | श्रीमद भागवत महात्मय मे " न हि वैष्णवता कुत्र सम्प्रदाय पुरःसरा " के अनुसार कही भी धर्म दिखायी नही दे रहा था |कलियुग मे सभी ऋषि मुनि भी भयग्रस्त होकर " अयं तु युग धर्मो हि " अर्थात यह तो युग का प्रभाव है , विचार करके गुफा कन्दराऔ मे एकान्त वास करके भजन पुजन मे समय व्यतित करने लगे |
     कलयुग में जब अधर्म और पाप हर जगह बढ़ने लगा तब सबने देवर्षि नारद जी से इस बारे में बात की । देवर्षि नारद जी समय ठीक है ! यह कहकर  जिम्मेदारी से बचकर भागना नही चाहते थे | उन्होने अनेको प्रयत्न किए , किन्तु सफलता नही मिली , तब अपने पिताश्री ब्रह्मा जी से प्रार्थना की लेकिन उन्होने भी असमर्थता व्यक्त की , बाद मे हताश निराश किन्तु निरंतर प्रयत्नशील देवर्षि बद्रीकाश्रम ( बद्रीनाथ ) अपने गुरुदेव श्रीसनकादिक भगवान के पास गए और अपना दुख व्यक्त किया | श्रीसनकादिक भगवान के आदेश से नारद जी सीधे गोलोकधाम ( श्रीधाम वृंदावन ) मे नित्य निकुंज बिहारी श्री राधा कृष्ण के सम्मुख उपस्थित हुए |
     श्रीधाम मे देवर्षि जी श्रीराधा कृष्ण की सेवा मे अहर्निश मुग्धा , स्निग्धा , अस्निग्धा , विदग्धा इन चार रुप से अंतरंगा सखियो के रुप मे सेवा मे रहते है | आज तो सभी सखी सहचरी वृन्द के सामने ही श्री युगल सरकार की सेवा मे देवर्षि का विदग्धा इन चार रुप से अन्तरंगा सखियो के रुप मे सेवा मे रहते है | आज तो सभी सखी सहचरी वृंद के सामने ही युगल सरकार की सेवा मे देवर्षि का विदग्धा रुप प्रकट था और उन्होने श्री युगल सरकार को उनके द्वारा त्रिविक्रम नामक ब्रह्मांड मे संस्थापित धर्म , उपासना , ब्रजरस की कलियुग के द्वारा विलुप्ति की और अपने प्रयत्नो की रोषपुर्ण सुचना दी |
    जब देवर्षि नारद जी ने अपनी चिंता राधारानी को बताई तो उसी क्षण श्रीवृंदावनेश्वरी लाडली राधा रानी ने तुरंत अपनी प्रधान युथेश्वरी श्रीरंगदेवी जू को आज्ञा दी कि आप तो सभी ब्रह्माण्डो मे चक्रराज सुदर्शन के रुप मे भगवान की सेवा मे रहती है ( अर्थात राधा रानी की प्रधान सेविका श्रीरंगदेवी ही सुदर्शन चक्र का स्वरुप धारण करके भगवान रासेश्वर कृष्ण की सेवा करते है ) इसलिए आप भुमण्डल ( धरती ) पर अवतरित होकर धर्म संस्थापना और नित्य निकुंज की रसोपासना का प्रचार प्रसार करे |

● श्री निम्बार्क भगवान का प्राकट्य 

     सर्वेश्वरी राधा रानी के आदेश से इस भुमण्डल पर दक्षिण भारत मे गोदावरी नदी के पावन तट पर वैदुर्यपत्तन जिसे दक्षिण काशी कहते है उसी जगह रंगदेवी रुप भगवान सुदर्शन चक्र निम्बार्क भगवान के रुप मे अवतरित हुए ( वर्तमान मे यह स्थान महाराष्ट्र के अहमदनगर के मुंगी पैठन मे है जिसे " निम्बार्क प्राक्टय " स्थली कहते है

निम्बार्क भगवान || Nimbark Bhagwan

निम्बार्क भगवान की मां का नाम जयन्ती देवी व पिता का नाम श्री अरुण ऋषि जी था , इनका बाल्यकाल का नाम नियमानन्द जी था | कुछ वर्ष बाद बाल्यकाल मे ही निम्बार्क भगवान सपरिवार ब्रज मे गौवर्धन के पश्चिम मे निम्बग्राम मे आकर रहने लगे | यही इनकी साधना तपस्थली रही व पुर्व मे निम्बार्क पीठ यही स्थापित थी |

● बालक नियमानंद का नाम निम्बार्काचार्य क्यो व कैसे पडा ?

श्री नियमानन्द जी की लगभग 5-7 वर्ष की आयु मे ब्रह्माजी ने परीक्षा ली | एक दिन सायं सुर्यास्त के समय ब्रह्माजी सन्यासी वेश रखकर श्री अरुण मुनि जी के आश्रम मे आए | ब्रह्माजी ने परिस्थिति ऐसी क़रदी की आश्रम मे उस समय कोई भी फल मिठाई रोटी दाल चावल आदि खाद्य पदार्थ तुरंत उपलब्ध नही था, और यति वेशधारी ब्रह्माजी ने श्री अरुणाश्रम पर आकर " माम भिक्षाम् देहि " कहकर आवाज लगा दी | आश्रम मे तुरंत सेवन योग्य खाद्य पदार्थ न देखकर और सुर्यास्त होते देख आश्रमवासी अतिथी असत्कार के पाप से भय ग्रस्त हो गए । 
   तब वहॉ खेल रहे श्री नियमानन्द जी हाथ उठाकर कहा कि अभी सुर्यास्त होने मे विलंब है अतः अतिथी यति जी को प्रसाद तैयार करके पवाऔ | भोजन बना भगवान को भोग लगा फिर यति जी ने भोजन पाया , फिर यति जी ने आचमन किया तो देखा सुर्य तो अचानक अस्त हो गए और गहन अंधकार हो गया | 


तब यति वेशधारी ब्रह्माजी जी ने ध्यान लगाकर देखा तो पाया कि सुर्यास्त तो बहुत समय पहले हो चुका था लेकिन नियमानन्द जी ने नीम के वृक्ष पर पुनः सुर्य के दर्शन करवाकर यति को भोजन पवाया था | ये अदभुत चमत्कार सभी आश्रमवासी भक्तों ने देखा तो नियमानन्द जी की जय जयकार करने लगे | निम्ब अर्थात निम और अर्क अर्थात सुर्य नीम के पेड पर सुर्य के प्रत्यक्ष दर्शन करवाने के कारण ही नियमानन्द जी का नाम "निम्बार्काचार्य" पडा |  तभी से यह सम्प्रदाय "निम्बार्क सम्प्रदाय" के नाम से विख्यात हुआ । 

● श्री निंबार्क सम्प्रदाय के अन्य नाम 

  हंस सम्प्रदाय, सनकादिक सम्प्रदाय, हरिप्रिया सम्प्रदाय, सखी सम्प्रदाय, द्वैताद्वैत सम्प्रदाय

● श्री निंबार्क सम्प्रदाय का दार्शनिक सिद्धांत 

  स्वाभाविक भेदाभेद स्वाभाविक भिन्नना भिन्न अर्थात परमानंद और जीवात्मा सहज रुप से एक भी है और भिन्न भी है ।

● श्री निंबार्क सम्प्रदाय के इष्टदेव 

निम्बार्क सम्प्रदाय के इष्टदेव

     श्री निंबार्क सम्प्रदाय के आराध्य देव श्री धाम वृंदावन में विराजमान "श्री राधाकृष्ण भगवान" है । श्री निंबार्काचार्य जी का वेदांत सूत्रों पर भाष्य " वेदांत सौरभ " और " वेदांत कामधेनु दश श्लोक " यह दो ग्रंथ उपलब्ध हैं । इनके अतिरिक्त गीताभाष्य, कृष्ण स्तवराज, गुरु परंपरा वेदांत तत्वबोध, वेदांत सिद्धांत प्रदीप स्वधर्म तत्वबोध, एेतिह्य तत्व सिद्धांत, राधा अष्टक आदि कई अन्य ग्रंथ आचार्य श्री ने लिखे थे । श्री निंबार्काचार्य जी ने प्रस्थानत्रयी के स्थान पर प्रस्थान चतुर्थी को प्रमाण माना और उसमें भी चतुर्थ प्रस्थान "श्रीमद् भागवत जी" को परम प्रमाण स्वीकार किया है ।

 ● श्री निम्बार्क सम्प्रदाय आचार्य परम्परा 

वैष्णव चतु: सम्प्रदायों में श्री निम्बार्क सम्प्रदाय अति प्राचीन सम्प्रदाय है। इसका प्रदुर्भाव श्रीब्रह्मा जी के मानस पुत्र श्रीसनकादि-महर्षियों से होता है। जैसा कि द्रष्टव्य है--
सनक: श्रीब्रह्मा रुद्र सम्प्रदायचतुष्टयम्
     सनकादि मुनिजन, श्री (लक्ष्मी), ब्रह्मा जी और भगवान् शंकर ये ही चारों वैष्णव चतु:सम्प्रदाय के प्रवर्तक हैं। इस सम्प्रदाय की आचार्य परम्परा श्रीहंस भगवान् से प्रारम्भ होती है। श्रीहंस भगवान् ने सनकादिकों के प्रश्न का समाधान कर उन्हें वैष्णवी दीक्षा प्रदान की। उपासना में श्रीसर्वेश्वर शालिग्राम भगवान् की सेवा-पूजा करने की आज्ञा प्रदान की थी। वह शुभ दिन युगादि तिथि कार्तिक शुक्ला नवमी (अक्षय नवमी) हंस भगवान् के अवतार का मुख्य उद्देश्य था, श्रीसनकादिकों के प्रश्न का समाधन कर उन्हें वैष्णवी दीक्षा प्रदान करना! अत: कार्तिक शुक्ला नवमी (अक्षय नवमी) श्रीहंस-सनकादि जयन्ती तथा श्रीसर्वेष्वर जयन्ती तथा श्रीसर्वेश्वर भगवान् का प्राकट्य दिवस भी उसी दिन मनाया जाता है।
   श्रीहंस-सनकादिक का यह प्रसंग श्रीद्भागवत (एकादश स्कन्ध 13 श्लोक संख्या 16 से श्लोक सं0 42 तक) में वर्णित है।श्री हंस भगवान् के शिष्य सनकादि मुनिजन हैं और श्रीसनकादिकों के शिष्य देवर्षि नारद तथा श्रीनारद के शिष्य है श्रीचक्रसुदर्शनावतार आद्याचार्य जगद्गुरु भगवान् श्रीनिम्बार्कमहामुनीन्द्र श्रीहंस भगवान्, श्रीसनकादि मुनिजन तथा देवर्षि श्रीनारद ये तीनों तो देवस्वरूप में है। अत: प्राय: करके कई सम्प्रदायों की परम्परा में इनका नाम आ जाता है, किन्तु इनके पश्चात् श्रीनिम्बार्क भगवान् आचार्य रूप में इस भूतल पर प्रकट हुए थे, अत: यह सम्प्रदाय "श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय" के नाम से लोक प्रसिद्ध हुआ।

निम्बार्क आचार्य परंपरा
    
 भगवान श्री हंस नारायण द्वारा स्थापित इस निंबार्क सम्प्रदाय में भगवान हंस के बाद से लगाकर आज तक 49 आचार्य हुए है और वर्तमान में 49 वें आचार्य " अनंत श्री  विभूषित जगद्गुरु निम्बार्कपीठाधीश्वर श्री श्यामशरण देवाचार्य श्री "श्रीजी"  महाराज " गद्दी पर विराजमान होकर धर्म प्रचार में संलग्न  है । 

*इन लेखन में किसी भी त्रुटी के लिए  हम आप सभी से क्षमा प्रार्थी है ।

              !!! निम्बार्क भगवान की जय !!!

[ Always Chant Yugal Naam ]

RADHEKRISHNA RADHEKRISHNA KRISHNA KRISHNA RADHE RADHE | RADHESHYAM RADHESHYAM SHYAM SHYAM RADHE RADHE ||


[ हर क्षण जपते रहिये ]

राधेकृष्ण राधेकृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे | राधेश्याम राधेश्याम श्याम श्याम राधे राधे ||


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