मां वैष्णों देवी की दीक्षा एवं आचार्य चरण की उन पर कृपा
बड़े आश्चर्य की बात हैं कि आकाश में विचरने वाली देवी मनुष्य की शिष्य हुई ! किन्तु यह घटना सारे संसार मे प्रसिद्ध हैं और महात्मा लोग श्री हरिव्यास देवाचार्य जी की इस कीर्ति का गान करते हैं! आपके साथ वैराग्य भावना से युक्त श्याम सुंदर के चरण कमल के प्रेमी संतो के समूह सदा रहते थे! हरि भजन के प्रताप के कारण आपने एक बार देवी को भी अपना शिष्य बना लिया था!
एक बार संतों के साथ भ्रमण करते श्री हरिव्यास जी "चटथावल" नामक गाँव में पहुँचे, वहाँ एक बाग देखकर आपका मन ऐसा प्रसन्न हुआ कि उस दिन आपने वहीं ठहरने का निश्चय किया ! बाग में ठहरकर आपने स्नानादि क्रियायें करके नित्य नियम किया और तब रसोई करने की सोची ! वहाँ एक देवी का मंदिर थी जिसमें किसी ने उसी समय आकर बकरे की बलि चढ़ाई, उस दृश्य को देखकर सब संतो को बड़ी ग्लानि हुई और उन्होंने सोचा कि प्रसाद ग्रहण करना तो दूर रहा यहाँ का पानी भी नहीं पीना चाहिए !
इस निश्चय के अनुसार संतों ने कुछ नही खाया और रात्रि आ पहुंची, किन्तु भूखे रहने के कारण तेज की एक अपूर्व ज्वाला सी उनके मन में उदित हुई जिसे न सह सकने के कारण देवी को ऐसा अनुभव होने लगा कि जैसे उसका अस्तित्व ही मिटने को हो! शंकित होकर देवी नया रूप धरकर संतों के सामने उपस्थित हुई संतों के दर्शन करते ही देवी का हृदय श्रद्धा और प्रेम से परिपूर्ण हो गया और वह विनम्र स्वर में बोली - महाराज आप लोग रसोई बनाइये भूखे क्यों रहते हैं, संतों ने कहा यहाँ की ऐसी स्थिति हैं यहाँ रसोई कौन करे? इस पर देवी ने कहा जिसके कारण आप लोगों को इतनी ग्लानि हुई हैं वह देवी मैं ही हूँ, अब कृपया मुझे यह दान दीजिए कि मुझे अपनी शिष्या बना लीजिए
देवी के प्रार्थना पर श्री हरिव्यास देवाचार्य जी ने उसे भक्ति मार्ग की दीक्षा दी, दीक्षा लेते ही देवी नगर की ओर दौड़ी और उस गाँव का जो मुखिया था उसकी खाट को पलट दिया, मुखिया जब पृथ्वी पर गिर पड़ा तब देवी उसकी छाती पर चढ़ बैठी और कहने लगी, मैं अब हरिव्यास देवाचार्य जी की शिष्य हो गई हूं वैष्णवी हो गई हूं तुम लोग भी यही उनके शिष्य नही बनोगे तो सबको मार डालूँगी, देवी का आदेश पाकर गाँव के सभी लोगों ने श्री हरिव्यास देवाचार्य जी के शिष्य बन गए और तिलक कंठी आदि वैष्णव चिन्हों को धारण कर ऐसे दिखने लगे जैसे उन्होंने नया शरीर धारण किया हो, वैष्णव होते ही वे लोग पाप रहित हो गए! इस घटना के बादश्री हरिव्यास देवाचार्यजी कुछ दिन तक वहां रहे उन्हीं दिनों एक चांडाल आपकी शरण आया और सद्गति की प्रार्थना की , आपने उसे भी भक्ति रस का अधिकारी बनाया!!
जय राधामाधव ...
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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