श्री हंस भगवान का चरित्र
( निम्बार्क सम्प्रदाय के संस्थापक )
अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक, करुणा-वरुणालय, सर्वान्तर्यामी, सर्वशक्तिमान्, सर्वाधार श्रीहरि के मुख्य 24 अवतारों में श्रीहंस भगवान् भी एक अवतार है। आपका प्राकट्य सत्ययुग के प्रारम्भ काल में युगादि तिथि कार्तिक शुक्ला नवमी (अक्षय नवमी) को माना जाता है। आपके अवतार का मुख्य प्रयोजन यही मान्य है कि एक बार श्रीसनकादि महर्षियों ने पितामह श्रीब्रह्मा महाराज से प्रश्न किया कि-पितामह ! जबकि चित्त और विषयों का परित्याग कैसे करें ?
यह चित्तवृत्ति-निरोधात्मक गम्भीर प्रश्न जब ब्रह्माजी के समक्ष आया तब महादेव ब्रह्म ने भगवान् श्रीहरि का ध्यान किया। इस प्रकार ब्रह्माजी की विनीत प्रार्थना पर-
‘‘ऊर्जे सिते नवम्यां वै हंसो जात: स्वयं हरि:’’
कार्तिक शुक्ला नवमी को स्वयं भगवान् श्रीहरि ने हंसरूप में अवतार लिया! भगवान् ने हंसरूप इसलिए धारण किया कि जिस प्रकार हंस नीर-क्षीर (जल और दूध) को पृथक् करने में समर्थ हैं, उसी प्रकार आपने भी नीर-क्षीर विभागवत् चित्त और गुणत्रय का पूर्ण विवेचन कर परमोत्कृष्ट दिव्य तत्व के साथ-साथ पंचपदी ब्रह्मविद्या श्रीमन्त्रराज का सनकादि महर्षियों को सदुपदेष उनके सन्देह की निवृत्ति की। यह प्रसंग श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्ध अध्याय 13 में श्रीकृष्णोद्धव संवादरूप से विस्तारपूर्वक वर्णित हैं।
!! जय राधा माधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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