google.com, pub-8916578151656686, DIRECT, f08c47fec0942fa0 २) श्री सनकादिक भगवान का चरित्र || Biography Of Shri Sankadik Bhagwan

२) श्री सनकादिक भगवान का चरित्र || Biography Of Shri Sankadik Bhagwan

२) श्री सनकादिक भगवान का चरित्र

२) श्री सनकादिक भगवान ( हरिणी सखी के अवतार )

( हरिणी सखी के अवतार )

यदीयपादाब्जयुगाश्रयेण भक्तिर्वरिष्ठात्ववती विशुद्धा ।
उदञ्चती श्रीभगवत्यजस्त्र नमाम्यहं श्रीसनकादिकं तम् ।।
जय जय सनक - - सनन्दन, सनातन - सनत - कुमार ।
रुप चतुष्टय पद कमल, वन्दौ बारम्बार ।।

  भगवत्परायण, बाल-ब्रह्मचारी, सिद्धजन, तपोमूर्ति ये चारों भ्राता सृष्टिकर्ता श्रीब्रह्मदेव के मानस पुत्र हैं। इन चारों के नाम हैं-सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार। इनके उत्पन्न होते ही श्रीब्रह्माजी ने इनको सृष्टि विस्तार की आज्ञा दी पर इन्होंने प्रवृत्ति मार्ग को बन्धन जानकर परम श्रेष्ठ निवृत्ति मार्ग को ही ग्रहण किया।
   इन महर्षियों ने श्रीहंस भगवान् द्वारा कार्तिक शुक्ल नवमी को वैष्णवी पंचपदी ब्रह्मविद्या श्रीगोपाल मन्त्रराज की दीक्षा संप्राप्त कर लोक में निवृत्ति धर्म कर प्रचार-प्रसार किया। अत: ये लोकाचार्य के नाम से प्रसिद्ध हैं। श्रीसनकादि मुनिजन निवृत्ति धर्म एवं मोक्ष मार्ग के प्रधान आचार्य है। पूर्वजों के पूर्वज होते हुये भी सदा ही पॉंच वर्ष की अवस्था में रहकर भगवद्भजन में ही संलग्न रहते हैं। श्रीसर्वेष्वर प्रभु इन्हीं के संसेव्य ठाकुर हैं, भगवान् द्वारा श्रीगोपाल मन्त्रराज का सतत अनुष्ठान करना परम लक्ष्य है जैसे--
नारायणमुखम्भोजामन्त्रस्त्वष्टादशाक्षरः ।
आर्विर्भूतः कुमारैस्तु गृहीत्वा नारादाय च ।।
उपदिष्टः स्वशिष्याय निम्बार्काय च तेन तु ।
एवं परम्पराप्राप्त - - मनत्रष्त्वष्टादशाक्षरः ।।
   यह अष्टादशाक्षर श्रीगोपाल मन्त्रराज श्रीहंसरूप नारायण द्वारा श्रीसनकादिकों को प्राप्त हुआ। श्रीसनकादिकों से देवर्षि श्रीनारद को मिला और श्रीनारद द्वारा सुदर्षनचक्रावतार भगवान् श्रीनिम्बार्क को संप्राप्त हुआ। इस प्रकार सम्प्रदाय में यह परम्परागत मन्त्र है। जो ’’गोपालतापिन्युपनिषद्’’ का वैदिक मन्त्र है। इसका वर्णन विभिन्न पुराणों एवं तन्त्रों में भी भली प्रकार उपलब्ध है। श्रीसनकादिकों द्वारा लिख्ी हुई ’’श्रीसनत्कुमार संहिता’’ प्रसिद्ध है। इनका पाटोत्सव (आविर्भाव-दिवस) कार्तिक शुक्ला नवमी को मनाया जाता है।
 !! जय राधामाधव !!


[ हर क्षण जपते रहिये ]

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