४) सुदर्शन चक्रावतार भगवान निम्बार्क का चरित्र
( श्रीरंगदेवी सखी के अवतार )
आपका आविर्भाव युधिष्ठिर शके 6 में कार्तिक शुक्ला 15 को सायंकाल मेष लग्न में हुआ था। जन्म समय चन्द्र, मंगल, बुध,गुरु और शनि ये पॉंच ग्रह उच्च स्थान में थे। माता का नाम श्रीजयन्तीदेवी तथा पिता का नाम श्रीअरुण मुनि था। जन्म-स्थान दक्षिण प्रान्त गोदावरी तटवर्ती श्रीअरुणाश्रम हैं। यह स्थान मूंगी-पैठण जि0 औरंगाबाद, महाराष्ट्र राज्य में आजकल पैठण के नाम से प्रसिद्ध मूंगी ग्रामस्थ श्रीअरुणाश्रम है। आपका जन्मकालीन नाम नियमानन्द था। भक्तजनों की करुणाभरी पुकार पर गोलोक विहारी भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र ने अपने परम प्रिय आयुध श्रीचक्र सुदर्शनजी को आदेश देते हुए कहा था कि -
"हे कोटि सूर्य सदृषशश दिव्य तेजधारी महाबाहो चक्रराज! आप शीघ्र ही भूतल पर अवतरित होकर अज्ञान रूप घोर अन्धकार में डूबे हुए जीवों को वैष्णव धर्म के प्रचार-प्रसार द्वारा भक्ति का पथ-प्रदर्शन कराओ।"
इस भगवदादेशानुसार इस भुमण्डल पर दक्षिण भारत मे गोदावरी नदी के पावन तट पर वैदुर्यपत्तन जिसे दक्षिण काशी कहते है उसी जगह रंगदेवी रुप भगवान सुदर्शन चक्र निम्बार्क भगवान के रुप मे अवतरित हुए ( वर्तमान मे यह स्थान महाराष्ट्र के अहमदनगर के मुंगी पैठन मे है जिसे " निम्बार्क प्राक्टय " स्थली कहते है ) निम्बार्क भगवान की मां का नाम जयन्ती देवी व पिता का नाम श्री अरुण ऋषि जी था , इनका बाल्यकाल का नाम नियमानन्द जी था | कुछ वर्ष बाद बाल्यकाल मे ही निम्बार्क भगवान सपरिवार ब्रज मे गौवर्धन के पश्चिम मे निम्बग्राम मे आकर रहने लगे | यही इनकी साधना तपस्थली रही व पुर्व मे निम्बार्क पीठ यही स्थापित थी |
यह निम्बार्क सम्प्रदाय अति प्राचीन है। युधिष्ठिर शके 6 को आज पाँच हजार वर्षों से अधिक चल रहा हैं। जैसे-धर्मराज युधिष्ठिर शके प्रमाण 3044 वर्ष तत्पश्चात् विक्रम सम्वत् के इस समय 2041 वर्ष इन दोनों का योग मिलाकर 5185 वर्ष होते हैं। अर्थात् विक्रम सं0 2041 में आपके प्राकट्य समय को 5071 वर्ष हुए जो कि कई स्थानों(ग्रन्थ या व्रतोत्सव-पत्रों) पर श्रीनिम्बार्काब्द के आगे अंकित रहता हैं।
एक बार अपने आश्रम में दिवाभोजी दण्डी महात्मा के रूप में श्रीब्रह्माजी को रात्रि हो जाने पर भोजन करने से निषेध करते देखकर नीम वृक्ष पर अपने तेज-तत्व श्रीसुदर्शनचक्र को आवाहन कर सूर्य रूप में दर्शन कराकर उन्हें भोजन कराया। निम्ब (नीम) के वृक्ष पर अर्क (सूर्य) के दर्शन कराने पर ब्रह्माजी द्वारा आपका नाम श्रीनियमानन्द से "निम्बार्क" रखा गया
और आपके द्वारा प्रसारित सम्प्रदाय को "श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय" के नाम से प्रसिद्ध किया। आपने देवर्षि श्रीनारदजी द्वारा इसी स्थान श्रीगोवर्धन की उपत्यका अरुणाश्रम - - वर्तमान श्रीनिम्बग्राम (नीमगॉंव) में पंचपदी ब्रह्मविद्या गोपाल मन्त्रराज की दीक्षा ग्रहण कर एवं श्रीसनकादिक संसेव्य गुञ्जाफल सदृश स्वरुप दक्षिणावर्ती चक्राडिकत शालग्राम रुप श्रीसर्वेश्वर प्रभु की सेवा ग्रहण कर श्रीहंस - - सनकादि द्वारा परम्परागत स्वाभाविक द्वैताद्वैत सिद्धान्त और युगलकिषोर श्रीराधाकृष्ण की युगल उपासना का लोक में प्रचार-प्रसार किया।
आपका सिद्धान्त और उपासना संक्षिप्त में इस प्रकार है-
श्रीनिम्बार्क सिद्धान्त में तत्त्वत्रय (ब्रह्म, जीव और प्रकृति) अनन्त और अनादि हैं। ब्रह्म स्वतन्त्र और प्रकृति परतन्त्र (ब्रह्म के अधीन) है। बद्ध, बद्धमुक्त और मुक्त सामान्यत: जीवों के ये तीनों प्रभेद हैं, जो प्रकारान्तर से अनेक हो जाते हैं जो सिद्धान्त शास्त्रों द्वारा जाने जा सकते हैं समस्त चराचर जगत् ब्रह्म का अंश एवं परा - - परात्मिका प्रकृति शक्ति होने के कारण सत्य है। जीव प्रकृति रूप से चराचरात्मक सम्पूर्ण विश्व - - ब्रह्म से भिन्न हैं, किन्तु उसका अंश एवं शक्ति होने के कारण स्वभावत: अपृथक् सिद्ध अभिन्न भी है। यही स्वाभाविक द्वैताद्वैत (भेदाभेद तथा भिन्नाभिन्न नामक) सिद्धान्त हैं। इस सम्प्रदाय में जीव को सखी भाव द्वारा नित्यञ्जविहारी प्रिया-प्रियतमलाल श्रीराधाकृष्ण की पंचकालानुष्ठान विधि से उपासना करने का विधान हैं! श्रीनित्यनिकुंज में आप रंगदेवी जू कें नाम से सेवा में रहते हैं।
● श्री निंबार्क भगवान के अष्ट रूप
(१) रंग देवी जी,
(२) चक्र राज सुदर्शन,
(३) श्री तोष सखा,
(४) मुकुट,
(५) धूसर गाय,
(६)श्री राधा रानी की नथ,
(७) श्री राधा रानी की आभा,
(८) आचार्य रूप श्री निंबार्क ।
आपके द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध ग्रन्थ इस प्रकार है - -
बादनारायण कृत ब्रह्मसूत्रों पर "वेदान्त पारिजात सौरभ" नामक भाष्य, वेदान्त दशश्लोकी, मन्त्र रहस्य षोडशी, प्रपन्नकल्पवल्ली, राधाष्टक और प्रात: स्मरणादि स्तोत्र।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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