५) श्री निवासाचार्य जी का चरित्र
( नव्यवासा सखी के अवतार )
शंखावतारः पुरुषोतमस्य यस्य ध्वनिः शास्त्रमचिन्त्य शक्तिः ।
यत्स्पर्शमात्राद् ध्रुवमाप्तकामस्तं श्रीनिवासं शयणं प्रपद्ये ।।
ये भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र कर-कमलांकित श्रीपांचजन्य शंख के अवतार हैं तथा श्रीनिम्बार्क भगवान् के प्रमुख षिष्य है। इनका निवास-स्थान व्रजमण्डल में श्रीगोवर्धन के समीप श्रीराधाकुण्ड ललिता संगम पर है! यह स्थान श्रीनिवासाचार्यजी की बैठक के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर आपके चरण-चिह्न हैं, जिनकी नियमित रूप से सेवा-पूजा होती है। आपके शंखावतार होने का प्रमाण आप ही के पट्ट शिष्य श्रीविश्वाचार्यजी महाराज द्वारा निर्मित उपर्युक्त श्लोक में निर्दिष्ट है। आपके द्वारा निर्मित ब्रह्मसूत्रों पर बृहद्भाष्य वेदान्त "कौस्तुभ" के नाम से सुप्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक ग्रन्थ हैं, जिनमें केवल ’’लघुस्तवराज’’ मिलता है, अन्य-ख्याति निर्णय, पारिजात सौरभ भाष्य, रहस्य प्रबन्ध, कठोपनिषद् भाष्य आदि अनुपलब्ध हैं।
आचार्यरूप में आप श्रीपाञ्चजन्य शंखावतार हैं और निकुंज उपासना में श्रीनव्यवासा (प्रियाप्रियतम श्रीयुगलकिषोर की नित्य सहचरी) के अवतार माने जाते हैं। आपका पाटोत्सव दिवस माघ शुक्ला पंचमी
(वसन्त पंचमी) को मनाया जाता हैं।
श्रीमद्धंसं कुमारांश्च नारदं मुनिपुड्गवम् ।
निम्बार्क श्रीनिवासञ्च वन्दे आचार्य - पंचकम् ।।
श्रीहंस भगवान् से लेकर श्रीनिवासाचार्य पर्यन्त इन पाँचों आचार्यो को आचार्य - पञ्चायतन के नाम से कहा जाता हैं। श्रीनिम्बार्काचार्य पीठ निम्बार्क तीर्थ सलेमाबाद एवं श्रीवृन्दावन धाम, निम्बग्राम आदि कई एक स्थानों में इन पाँचों की कहीं चित्रपट रुप में तथा कहीं शैली प्रतिमाओं के रूप में स्थापना कराई हुई हैं। नित्य प्रति सेवा - पूजन का क्रम भी भगवदर्चा के समान ही चलता हैं ।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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