श्रीनिवासाचार्य से लेकर श्रीदेवाचार्य पर्यन्त आचार्यों की "द्वादशाचार्य" में आपकी अन्तिम गणना है। आपके ग्रन्थों से आपका प्रकाण्ड पाण्डित्य स्पष्ट अवगत होता है। आपके रचे हुए ग्रन्थों में से "जाह्नवी" (ब्रह्मसूत्रों की वृत्ति) दो तरंगों तक उपलब्ध होती है। वह मुद्रित है, शेष अलभ्य।
"भक्तिरत्नांजलि" (अनन्तराम वेदान्त केषरी के एक श्लोक द्वारा अवगत) भी अप्राप्य है। अमुद्रित प्राचीन संक्षिप्त आचार्य चरित्र में, माघ शुक्ला पंचमी को आपका पाटोत्सव और भगवान् के हस्त कमलाश्रित पद्य का आपको अवतार माना है।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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