श्री माधवाचार्य जी का जीवन चरित्र
( मधुरा सखी के अवतार )
श्रीस्वरूपाचार्य के सिंहासन को आपने अलंकृत किया। आषाढ शुक्ला दशमी को आपका पाटोत्सव मनाया जाता है। यद्यपि आपका रचा हुआ अभी तक कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ है तथापि यह निश्चित है कि आप एक उच्चकोटि के विद्वान् थे। आपका जन्म एक उच्च ब्राह्मण कुल में हुआ था। आपके पिता एक अच्छे राज्य के अधिपति थे, किन्तु आपने उस राज्य को त्याग दिया! गुरुदेव से वैष्णवी दीक्षा प्राप्त कर भजन करने लगे। गुरुदेव के वृन्दावन वास होने पर उनके सिंहासन पर आप विराजे। साधु-सन्तों सहित वृन्दावन से एक बार तीर्थाटन करते हुए काशी पहुॅंचे। यहॉं गोविन्द नाम के बडे गुणग्राही सच्चे जिज्ञासु पच्चीस वर्ष वयस्क एक दण्डी सन्यासी थे। आचार्य का आगमन देखकर-सुनकर वेश बदलकर उनके निकट पहुॅंचे। गेरुआ वस्त्र उतार कर उन्होंने श्वेत वस्त्र पहन लिये। गले में तुलसी की कण्ठी और भाल पर सुन्दर ऊर्ध्वपुण्ड्र लगा लिया आचार्य ने इस भेद को जान लिया और दण्डी से कहा "आपने अच्छा किया जो बंधक रूप दण्ड कमण्डल को छोडकर इस निर्बंधन भाव को अपनाया।" दण्डी के बडी प्रार्थना की, क्षमा मांगी और कहा प्रभो ! आपने ही आन्तरिक प्रेरण कर मुझसे वेश बदलवाया! अब मुझे आप अपनी शरण में ले लें। मैं आपकी शरण में हूॅं। श्रीमाधवाचार्य ने उन्हें दीक्षा दी। वे ही आगे बलभद्राचार्य हुए। श्रीमाधवाचार्य ने 60 वर्षों तक अवनितल पर श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ को अलंकृत किया। उनके पश्चात् श्रीबलभद्राचार्य पीठासीन हुए। रहस्य परम्परा आपका ’’श्रीमधुराजी’’ नाम है ।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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