श्री स्वरुपाचार्य जी का जीवन चरित्र
( सरसा सखी के अवतार )
आपके सम्बन्ध में भी संस्कृत ग्रन्थों में संक्षिप्त ही उल्लेख मिलता है। कहा जाता हे कि आप स्वरूप एवं पर (उपास्य) स्वरूप में ही निरन्तर निमग्न रहते थे। निकुंज उपासना पद्धति से आप "सरसा सखी" के अवतार हैं। अत: सखी परम्परा में आपका सरसा नाम है। आचार्य पीठासीन होते हुए भी आप वृन्दावन से बाहर पर्यटन करने नहीं गये।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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