श्री श्यामाचार्य जी का जीवन चरित्र
( श्यामा सखी के अवतार )
आपके जीवन-वृत्तान्त के सम्बन्ध में संस्कृत ग्रन्थों में अत्यन्त सूक्ष्म वर्णन मिलता है। आचार्य चरित्र "गुरुनति वैजयन्ती" आदि ग्रन्थों में केवल वन्दना और उसके पाटोत्सव दिवस का परिचय मात्र मिलता है। ग्रन्थों में श्रीकिशोरदासजी ने भी विस्तृत उल्लेख न करके संक्षिप्त ही परिचय दिया है। कहा जाता है कि आपका भी माथुर (चतुर्वेदी) कुल में ही जन्म हुआ था। आप उत्कट विरागवान् थे। किसी भी तनधारी से सम्बन्ध नहीं रखते थे। प्रतिदिन श्रीयमुनाजी ही उन्हें प्रसाद खिलाती थी। किसी से मिलते भी थे तो अनमिल जैसे ही रहते थे। गोकुल में अधिक रहते थे। जब इच्छा होती थी तभी वृन्दावन आ पहुॅंचते थे और निधिवन में निवास किया करते थे यहॉं के क्षण-क्षण में श्रीप्रिया-प्रियतम के अद्भुत अलौकिक लीला-विलासों का प्रकाश देखा करते थे। अत्यन्त विराग के कारण ही आपने किसी प्रकार का संग्रह नहीं किया। इसी से आपकी जीवनी का विशेष परिचय नहीं होता। श्रीअनन्तरामजी के एक श्लोक से भी यही आशय व्यक्त होता है कि आप निरन्तर श्रीश्यामसुन्दर को निहारा करते थे। इसी के गुरु प्रदत्त आपका श्यामाचार्य नाम चरितार्थ हुआ। आपका पाटोत्सव आश्विन शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता हैं।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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