श्री पद्माचार्य जी का जीवन चरित्र
( पद्मा सखी के अवतार )
श्रीबलभद्राचार्य के पश्चात् आपने श्रीनिम्बार्कपीठ को अलंकृत किया! आप माथुर मथुरा( पद्मा सखी के अवतार ) के चतुर्वेदी कुल के दीपक माने जाते हैं। जन्म से ही आप अद्भुत अलौकिक गुण दिखाई देते थे। ज्यों ही किशोरावस्था आई कि आपको संसार से विराग हो गया। 16 वें वर्ष में ही आप श्रीगुरुदेव की शरण में श्रीवृन्दावन आ गये। गुरुदेव के चरणों में गिरकर आपने अपने मनोभाव सुनाये। आचार्य ने जान लिया कि यह अवश्य ही नित्यसिद्ध परिकर में से है। वैष्णव पंच संस्कारों से अलंकृत कर मन्त्रोपदेश दिया। जैसे दीपक से दीपक के जल जाने पर उसका भी वैसा ही प्रकाश हो जाता है, वैसे ही श्रीबलभद्राचार्य के सम्पर्क से आपका प्रकाश बढ़ा । पद्माचार्य नामकरण कर गुरुदेव के चित्त में भी गडी शान्ति हुई। श्रीबलभद्राचार्य किसी गृही (विषयी) को शिष्य नहीं बनाते थे। ऐसे जो जीव शरणागत होते उनको श्रीपद्माचार्य सत्पथ दिखाने लगे। आपका ज्ञान, प्रकाश और यश अधेिक से अधिक बढने लगा। गुरुदेव की विद्यमानता में ही आपने आचार्योचित कार्यभार सम्भाल लिया। गुरुदेव के पश्चात् आप चालीस वर्ष तक आचार्य सिंहासनासीन रहे। आपके कई ग्रन्थ भी लिखे किन्तु आज वे अनुपलब्ध है। अर्चिरादि पद्धति में आपके द्वारा रचित श्रीवृन्दावन वर्णन का एक श्लोक मिलता है- इससे पता चलता है कि आपके वृन्दावन और युगल उपासना सम्बन्धी विशिष्ट ग्रन्थ की रचना की थी। आपका पाटोत्सव भाद्रपद शुक्ला द्वादशी के दिन मनाया जाता है। आपकी वन्दना के रूप में एक श्लोक श्रीअनन्तरामजी का मिलता है, जिसमें आपके उपरोक्त जीवनवृत्त के भी दर्शन होते हैं।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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