|| श्रीराधामाधव प्रभु की आरती ||
राधामाधव युगलवपु, सेवित कवि जयदेव ।
निम्बारक आचार्यपीठ, कृपा करी गिरिदेव ।।1।।
श्री श्रीजी गोविन्दशरण, देवाचार्य महान ।
तिनके अतिशय प्रेमवश, राजत पीठ प्रधान ।।2।।
आरती राधामाधव की मधुर--मुखचन्द्र--सुधार्णव की ।।
विराजत मणिमय-मन्जुल-कुञ्ज ।
मनोरम नवतरु-कुसुम-सुपुञ्ज ।।
खगकुल-कलरव-मधुकर-गुज ।
उपासत सखिजन नित्यनिकुञ्ज ।।
परम कमनीय अनिवरचनीय, हृदय रमनीय,
दिव्य छवि अनुपम वैभव की ।
मधुर--मुखचन्द्र सुधार्णव की ॥१॥
सेवित रसकवि श्री जयदेव ।
वांछत जिन पदरज मुनि--देव ||
रसिकजन सो रज नित हि पेव ।
पुलकित हो जावे परिसेव ॥
गोवर्द्धन धाम, करत विश्राम, सकल जनकाम,
कृपा अति अभिनव केशव की।
मधुर--मुखचन्द्र सुधार्णव की ॥२॥
पधारे पीठ--निम्बारक धाम ।
विराजे कनकपीठ अभिराम ॥
शोभा अमित बनी धन गाम ।
दरश कर मुदित सकलजन-वाम ॥
युगल दम्पति, रसिक सम्पति, निखिल जम्पति
शरण श्रीराधामाधव की।
मधुर--मुखचन्द्र सुधार्णव की ॥३॥
आरती राधामाधव की मधुर--मुखचन्द्र--सुधार्णव की...
आरती राधामाधव की मधुर--मुखचन्द्र--सुधार्णव की ।।
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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