श्रीनिम्बार्काचार्य जी चरित्र और गौरांगी !! भाग 07


(श्रीनिम्बार्काचार्य जी चरित्र और गौरांगी )


मुकुन्दस्त्वया प्रेमडोरेन बद्ध, पतंगों यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः ।

( श्रीनिम्बार्क विरचित श्रीराधाष्टक )

भाग-7

श्रीनिम्बार्काचार्य


साधकों ! कल शाम को गौरांगी का फोन आया... जन्माष्टमी थी ।


कई दिनों से मेरी उससे बातें भी नही हुयी थीं ।


हरि जी ! क्या लिखा है आपने श्रीनिम्बार्कचरित्र... ! 


मैं राधाबल्लभी ! पर मुझे बहुत अच्छे लगने लगे हैं श्रीनिम्बार्काचार्य जी।


 "आज के विचार" में आपने जो बताया... मैं नही जानती थी श्रीनिम्बार्काचार्य जी को... ।


पर आपने बताया कि... श्रीराधा कृष्ण के युगलोपासना की शुरुआत 

श्रीनिम्बार्काचार्य जी से ही हुयी... आहा ! 


मैं भी खुश था...कई दिनों के बाद गौरांगी से बातें हो रही थीं ।


फिर चहकते हुए बोली... हरि जी ! रसोपासना, माधुर्य की उपासना... प्रेम की उपासना...ये श्री निम्बार्काचार्य जी की ही देन है ।


और हाँ... सखी भाव, सहचरी भाव का प्रकाश इन्होंने ही जगत में किया है... ये बहुत बड़ा योगदान है इनका ।


कितनी प्रेमपूर्ण होकर बोले जा रही थी गौरांगी ।


पता है हरि जी ! 4 दिन पहले... मैंने "आज के विचार" में श्रीनिम्बार्काचार्य जी को पढ़ा... मुझे वो बहुत प्यारे लगे ।


मैं श्रीराधाबल्लभ जी दर्शन करने गयी थी... वहाँ पास में ही निम्बार्क सम्प्रदाय का एक प्राचीन मन्दिर है... " पन्ना वाली कुञ्ज"...मैं कभी नही जाती थी वहाँ ।


पर "श्रीनिम्बार्काचार्य चरित्र" को पढ़कर मैं वहाँ गयी...मुझे अच्छा लगा...शान्त स्थान है...ठाकुर का नाम भी श्री युगल किशोर है ।


आहा ! क्या छवि है उनकी... ।


आप गए हो वहाँ ? गौरांगी ने मुझ से पूछा ।


हाँ...गया हूँ... मैं इतना ही बोला... मुझे गौरांगी की बातें सुननी थी ।


हरि जी ! वहाँ कुछ देर मैं खड़ी रही... अपलक नेत्रों से ठाकुर जी को निहारती रही... 


पर ये क्या ! पुजारियों ने कितना भारी पोशाक पहना रखा था... 


उमस वाली गर्मी... ऊपर से ये भारी आभूषण और ।


हरि जी ! मुझे गर्मी लगने लगी...मेरा शरीर जलने लगा मैं पसीने से नहा गयी... बल्कि मैं तो बाहर खुली हवा में थी ।


गौरांगी जब ये बोल रही थी... तब मुझे रोमांच हो रहा था... कितनी प्रेमपूर्ण है ना ये... श्री विग्रह को गर्मी लगी... तो उस गर्मी को अपने में अनुभव कर रही थी ये... ओह ! 


फिर क्या हुआ गौरांगी ? 


कुछ देर के लिए मोबाइल में आवाज नही आई... तो मैंने पूछा ।


नही कुछ नही... जल पी रही थी ।


हाँ... हरि जी ! फिर मासूम बच्चों की तरह साँस ले लेकर बोलना शुरू किया उसने ।


मैंने इधर उधर देखा... कोई पुजारी तो मिले... पर आस पास कोई पुजारी नही था... उस स्थान पर मैं ही थी ।


मैंने इधर देखा न उधर... मैं तो चली गयी भीतर गर्भ गृह में ।


नही नही... गलत मत समझना हरि जी !...इसमें मेरे ठाकुर जी की मर्जी भी शामिल थी... मैं सच कह रही हूँ...( ये कहते हुए आदतन उसने अवश्य अपने गले को छुआ होगा ) मुझे ही आँखों के इशारे से उन्होंने भीतर बुलाया... ।


मैं तुरन्त हरि जी ! गर्भ गृह में चली गयी... मुझे सारे काम जल्दी जल्दी करने थे... पुजारी कैसे हैं... मुझे पता नही था... सरल हैं या खूँसट ।


मैं भीतर गयी... मैंने एक बड़ा सा टीन का बक्सा खोला... वो पोशाक का ही बक्सा निकला ।


उसमें से एक पोशाक मिला मुझे... कॉटन का था... चन्दन कलर का... श्रीजी के लिए लहंगा भी मिल गया... मेरी ख़ुशी का ठिकाना नही था ।


मैंने फटाफट उनके सारे आभूषण और पोशाक निकाल दिए ।


और ये कॉटन के पोशाक पहना दिए ।


बस अब मुझे ठंडक मिली थी... शीतलता का अनुभव हो रहा था ।


मैं आनन्द से गर्भ गृह से बाहर आई... 


तभी... 


कौन हो तुम ? भीतर कैसे गयीं ? 


पुजारी आगये थे उसी समय... मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी ।


और जैसे ही उसने देखा... पोशाक चेंज कर दिए ।


ये किसने किये ? 


हरि जी ! मैं लड़की थी... अगर कोई लड़का होता... तो पीट ही देता वो पुजारी उसे ।


मैंने किये... 


...मुझे क्या डर ! मैंने निर्भय होकर कहा ।


 स्त्री होकर तुम मन्दिर में कैसे गयीं ? 


मैं यमुना स्नान करके आई हूँ... पवित्र हूँ...फिर क्या दिक्कत है !


मैं उसे जबाब दे रही थी ।


उसे बहुत गुस्सा आरहा था... पर वो करे क्या ? 


हाथ लगा नही सकता था मुझे ।


पर हमारे निम्बार्क सम्प्रदाय में स्त्री को विग्रह छूने का अधिकार नही है !


बेचारा दाँत भींच के बोल रहा था ।


क्यों नही... आपके ही सम्प्रदाय का ग्रन्थ है ना... महावाणी ।


उसमें जो अष्टयाम सेवा का वर्णन है... उसमें तो स्पष्ट लिखा है... "प्रातः कालहीं उठिके धारी सखी को भाव"


आपको अगर श्रीजी की सेवा करनी है... तो आपको पुरुष का अहंकार छोड़ना ही पड़ेगा... भावना से सखी भाव को धारण करो... फिर उनकी सेवा करो... हरि जी ! मैंने उसे स्पष्ट कहा ।


वो बगलें झाँकने लगा ।


फिर मैंने कहा... सखी भाव... यानि प्रेम भाव... पूर्ण प्रेम भाव ।


इस सखी भाव को प्रकाश में लाने वाले श्रीनिम्बार्काचार्य जी ही तो थे... फिर मैं शुद्ध पवित्र यमुना स्नान करके आई हुयी... एक सखी... तभी मैंने युगल किशोर जू के विग्रह की ओर देखा... तो आश्चर्य हरि जी ! वो विग्रह मुस्कुरा रही थी... मुझे और बोलने के लिए प्रेरित कर रही थीं... इन युगलवर को आज आनन्द आरहा था ।


क्या हुआ ? गलती अपनी तो देखनी नही है आपको... अब मैं आक्रामक हो गयी थी... ऐसे सेवा होती है !...श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय में "आत्मवत्" सेवा का विधान है... यानि अपने जैसा अनुभव करते हुए... सेवा करना... ।


क्या आपने ऐसा किया ? 


इतनी गर्मी में ऐसे पोशाक ? 


और ऊपर से आभूषण ? 


अब देखो...कितना अच्छा लग रहा है...दर्शन करो अब ।


पुजारी बेचारा क्या बोले... वो मुझे देखता ही रहा ।


मैंने उससे कहा... सखियों को थोड़ा सेवा का अवसर दो... इस निम्बार्क सम्प्रदाय में अहंकार वालों का... कोई काम नही है... अहंकार वाले यानि पुरुष... ।


जो निरहंकारी हैं... अहंकार से रहित हैं... वही तो सखी भाव है ।


और इन ठाकुर जी को वही पसन्द है... ।


गौरांगी बहुत तेजस्विनी है... जो बोलती है... स्पष्ट बोलती है ।


फिर हरि जी ! मैं विनम्र हो गयी... और मैंने कहा... पुरुष क्या जानें सजना... पुरुष क्या जानें कैसे पोशाक पहनाये जाएँ ।


कल से मुझे बुला लिया करो...मैं दो दिन में सिखा दूंगी... ।


ये कहकर मैं हँसते हुए चल दी... पर जाते जाते एक बार फिर ठाकुर श्री युगल किशोर जी को मैंने देखा... वो फिर मुस्कुरा रहे थे ।


हरि जी ! "सखी भाव" का मतलब ये नही है... कि देह से ही स्त्री हों... देह तो मिथ्या है ।


सखी भाव का मतलब है... प्रेम पूर्ण होना... प्रेम से सिक्त हृदय का होना ।


सखी भाव का मतलब है... सम्वेदन शील होना... सखी भाव का मतलब है...हृदय भरा हुआ हो... भाव से... ।


बस इसके बाद फोन कट गया था गौरांगी का... ।


( साधकों ! आज गौरांगी के साथ जो मेरी बातें हुयी थीं... उसे ही मैंने लिख दिया ।


शेष चर्चा कल "भक्तों के चरित्र" में "श्रीनिम्बार्काचार्य जी" का चरित्र... )


परी बलि कौन अनोखी बानि ।

ज्यो ज्यो भोर होत हैं त्यों त्यों, पौढत हौं पट तानि ।

आरस तजहु अरुनई उदई, गई निसा रति मानी ।

"श्रीहरिप्रिया" प्राणधन जीवनी , सकल सुखन की खानि ।।


Harisharan



[ हर क्षण जपते रहिये ]

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