श्री घनश्याम शरण देवाचार्य श्री श्रीजी महाराज का जीवन चरित्र || Biography of Shri Ghanshyam Sharan Devachary Shri ShriJi Maharaj
( शुक मंजरी सखी के अवतार )
हृदि सर्वेश्वरो यस्य करें जपवटी तथा ।
तं घनश्यामशरणदेवाचार्य हृदश्राय ।।
हृदि सर्वेश्वरो यस्य करें जपवटी तथा ।
तं घनश्यामशरणदेवाचार्य हृदश्राय ।।
अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्य पीठाधिपति श्रीघनश्यामशरणदेवाचार्य श्री "श्रीजी' महाराज बड़े शान्त, सरल, समदर्शी एवं सौम्य स्वरूप थे । आपका जन्म भी जयपुर मण्डलान्तर्गत हस्तेड़ा नामक ग्राम के उस गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था, कि जिस वंश परम्परा में आपके पूज्य गुरुदेव श्रीगोपीशरणदेवाचार्यजी महाराज का था । इस परम्परा के घर आज भी हस्तेडा में विद्यमान है । आप विक्रम सम्वत १९२८ से विक्रम सम्वत् १९६३ तक आचार्य पीठ पर विराजमान थे । आपके समय में हाथी, घोड़ा, पालकी, ऊंट, बैल, गायें आदि सब प्रकार से वैभव का पूर्ण साम्राज्य था ।
आप भगवान् श्रीराधामाधव तथा श्रीसर्वेश्वर प्रभु की सेवा के अतिरिक्त हरिनामस्मरण एवं जप - साधन में सतत् संलग्न रहा करते थे । श्रीमद्भागवत का नित्य स्वाध्याय तथा वैष्णव सेवा आपका प्रधान लक्ष्य था । जोधपुर, बीकानेर, बूंदी आदि राज्य में भी बड़े समारोह पूर्वक आपश्री की पधरावनी तथा कई बार तीर्थाटन आदि के आयोजन में भी बड़े ही वैभव पूर्वक होते रहे । आपके वचन में पूर्ण सिद्धि बल था । आपके शुभाशीर्वाद द्वारा कई भक्तों के मनोरथ पूर्ण हुए हैं । यहाँ भगवान् श्रीराधामाधव एवं श्रीसर्वेश्वर प्रभु के दर्शनों के अतिरिक्त इस तप:स्थली में श्रीस्वामीजी ( श्रीपरशुरामदेवाचार्यजी ) महाराज की धूनी की विभूती तथा नालाजी का जल श्रद्धालुजनों की मनोकामना पूर्ण करते हैं ।
आपके शुभाशीर्वाद द्वारा एक भक्त की वंशवृद्धि की चमत्कार पूर्ण घटना इस प्रकार है - -
श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ निम्बार्कतीर्थ ( सलेमाबाद ) से पश्चिम की ओर दो मील की दूरी पर जंगल में एक मालाराम चाड़ ( गुर्जर ) का केवल एक कच्चा घर और उसके चारों ओर काँटो का बाड़ा था । परिवार में वह और उसकी पत्नी तथा एक विधवा लड़की, यह तीन प्राणी थे । मालाराम चाड़ भेड़-बकरी रखता था । दिन भर जंगल में इधर - उधर उनको चराना यही उस का एकमात्र व्यवसाय था । इसी व्यवसाय में से धन संपन्न भी हो गया । खाने - पीने की कोई कमी नहीं थी, पर उसके संतान ( पु्त्र ) न होने के कारण वह सदा चिंतित रहता था ।
एक दिन की बात है, श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ के पण्डित श्रीरामधनजी तथा श्रीलक्ष्मीनारायणजी बोरायड़ा व्यास यजमान वृत्ति करते हुए इधर से आ निकले जहां पर वह भेड़ बकरी चराता था । उसने दोनों हाथ जोड़े, उन्होंने आशीष दी । थोड़ी देर वहीं वृक्ष के नीचे बैठ गए।परस्पर कुशल मंगल पूछने के पश्चात प्रसंग चल पड़ा, जिस दुख ही दुख से वह दुखी था ।
इसका समाधान करते हुए दोनों पण्डितों ने कहा - - देख तू छुप-छुपकर भगवान श्रीसर्वेश्वर के जंगल सागरमाला में भेड़ बकरी चराता है और लकड़ी भी काट लाता है, कभी दर्शन करना या पाई पैसा भेंट करने का काम नहीं - - किसी ने सच ही कहा है - - रोपे पेड़ बबूल का आम कहां से खाए, वही हालत तुम्हारी है । इस पर उसने कहा - बात ठीक ही है, अब आगे नहीं ऐसा नहीं होगा, किन्तु मेरी चिंता निवृत्ति का कोई उपाय ?
उपाय यही है, आचार्यश्री की पधरावनी कराकर उनका चरण पूजन कर शुभाशीर्वाद प्राप्त कर, श्रीसर्वेश्वर की कृपा से सब मनोरथ पूर्ण होंगे, विश्वास दिलाते हुए पण्डितों ने कहा ।
आप लोग भी क्या कह रहे हो ? ऐसे मेरे भाग्य कहां जो कि मेरे घर महाराजश्री का पधारना हो, जबकि बड़े - बड़े राजा - महाराजा भी इस सुअवसर के लिए लालायित रहते हैं ।
दोनों पंडित बोले कि तू इसकी चिन्ता मत कर । यदि हृदय में श्रद्धा - प्रेम भावना को तो सब कुछ हो सकता है, भगवान् शबरी और विदुर के यहां भी तो पधारे थे । तेरी भावना हो तो हम महाराजश्री से प्रार्थना करें । मालाराम ने नम्रतापूर्वक कहा - - मैं हृदय से चाहता हूं कि ऐसी कृपा हो तो कहना ही क्या ? हम तेरी ओर से प्रार्थना करेंगें, ऐसा कहकर दोनों पण्डित आ गए।
दूसरे दिन जब मन्दिर में दर्शन कर महाराजश्री को पञ्चांग श्रवण कराने हेतु सेवा में पहुंचे तो श्रीचरणों की प्रसन्न मुद्रा देख निवेदन किया कि सरकार ! आपकी बस्ती का ही एक गुर्जर मालाराम है, वह पधरावनी कर चरण पूजन करना चाहता है, उसकी भावना है, फिर भगवन् ! विशेष कोई दूर या असुविधा की बात नहीं । नित्य प्रति सरकार का जिधर घूमने जाना होता है, बस वही उस सेवक का घर है सो उधर लौटते समय १० - - १५ मिनट के लिए कृपा हो जाए । स्वीकृति हो गई । पण्डितों ने उसे सूचना कर दी । उसने निर्देशानुसार तैयारी कर ली । निर्धारित समय पर श्रीचरणों का वहाँ पधारना हो गया । मालाराम के हर्ष का पारावार नहीं । पग - पाँवड़ा पूर्वक पधरावनी कर चरण पूजन किया और यथाशक्ति भेंट की । जब आरती करने लगा तो उसके हाथ काँपने लगे और आँखों में आँसू बहने लगे ।
यह देख कर तत्काल ही परम दयालु महाराजश्री ने कहा क्यों, क्या बात है, ऐसा क्यों ? इस पर दोनों पण्डितों ने तुरंत सहारा लगाते हुए कहा कि महाराज ! क्या बताया जाए दाल-रोटी का तो इसके कोई घाटा नहीं, पर इसके कोई संतान नहीं है, यह एक यह एक लड़की है तो वह भी विधवा । अत: संतान ना होने से यह दुखी है और कोई बात नहीं । महाराजश्री ने प्रसन्न मुद्रा में ही कहा कि अभी कोई इसकी उम्र ज्यादा थोड़ी हुई हुई है । ३० - ४० वर्ष का ही है, चिंता क्यों करता है ? भगवान श्रीसर्वेश्वर प्रभु की कृपा हुई तो एक क्या सात पुत्र होंगे । अब तो सभी ने एक साथ भगवान श्रीसर्वेश्वर की बड़े ही हर्ष के साथ उच्च स्वर में जयघोष की ।
महाराजश्री के शुभाशीर्वाद द्वारा समय पाकर क्रमशः उसके सात ही पुत्र हुए और फिर उन्हीं सातों की सन्तान द्वारा इतनी वंश वृद्धि हुई कि जिस स्थान पर मालाराम चाड़ का घर था उसी स्थान पर आज मोतीपुरा नाम का एक ग्राम बसा हुआ है जिसमें उसी परिवार के सब घर हैं । भगवत्कृपा से आज भी यह सभी घर धन - जन संपन्न है । यह ग्राम ही नहीं, इसके अतिरिक्त इसके गाँव से थोड़ी दूर पर ही इसी वंश के घासीराम चाड़ की ढाणी भी प्रसिद्ध है । इस वंश की आचार्यपीठ में पूर्ण श्रद्धा है ।
वर्तमान आचार्यश्री चरणों की २-३ बार बड़े समारोह पूर्वक पधरावनी की है ₹600 खर्च कर बावन्नी आदि बड़े-बड़े कार्य संपन्न किए हैं, सहस्त्रों रुपए खर्च कर बावन्नी आदि बड़े-बड़े कार्य संपन्न किए हैं, तीन धाम की यात्रा आचार्यश्री के साथ तथा कुंभ आदि पर्वो पर भी जाते रहे हैं ।
मालाराम चाड़ के सात पुत्र हुए हैं और एक विधवा लड़की थी, उसी क्रमानुसार उसके वंश में फिर जिस किसी के २-४-५ सन्तान हुई उसकी तो कोई बात ही नहीं, पर किसी के साथ लड़के हो गए हो, तब तो उनके वही एक बहन हुई और वह भी विधवा भी हुई । यह परंपरागत इतिवृत हमको अधिकारी श्रीनरहरिदासजी ने सुनाया और साथ ही यह भी कहा कि आज भी घासी चाडं के सात लड़के हैं तो उसकी वहीं एक लड़की विधवा भी है । उस समय की बात का अब भी यह प्रत्यक्ष चमत्कार है ।
इसके अतिरिक्त एक बार रिड़ के राठी परिवार ने भी आपश्री की पधरावनी कराई और दस हजार कलदार चांदी के रुपयों की एक चबूतरी बनवाकर उस पर आपश्री को विराजमान करके चरण पूजन कर वह धन - राशि भेंट की । उसी धन राशि से आचार्यश्री ने भगवान् श्रीराधामाधवजी के चांदी का विशाल भव्य सिंहासन ( बंगला ) बनवाया जिस पर भगवान् श्रीराधामाधवजी विराजमान है ।
इसी प्रकार आप के समय पीसांगन राजाजी के पुत्र कामना पूर्ण होने पर राजकुमार का चोटी जडुला और राजभोग आदि पीठ में श्रीस्वामीजी महाराज की तप:स्थली में आकर उत्साह पूर्वक अपना मनोरथ सम्पन्न किया था, उनके यहाँ से आया हुआ रथ, पालकी आदि आज भी पीठ में विद्यमान है ।
इस प्रकार आचार्य श्रीघनश्यामशरणदेवाचार्यजी महाराज की वाक् सिद्धि द्वारा कितने भक्तों के मनोरथ पूर्ण हुए है । आपकी चरण पादुकाएं आचार्य पीठ में ही विद्यमान है । आपका पाटोत्सव आश्विन कृष्ण ६ ( षष्टि ) को मनाया जाता है ।।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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