४८) श्री राधासर्वेश्वर शरण देवाचार्य श्री श्रीजी महाराज का जीवन चरित्र

श्री राधासर्वेश्वर शरण देवाचार्य श्री श्रीजी महाराज का जीवन चरित्र || Biography of Shri RadhaSarveshwer Sharan Devachary Shri ShriJi Maharaj


श्री राधासर्वेश्वर शरण देवाचार्य श्री श्रीजी महाराज का जीवन चरित्र || Biography of Shri RadhaSarveshwer Sharan Devachary Shri ShriJi Maharaj


 ( रत्नप्रभा सखी के अवतार ) 

        कण्ठे सर्वेश्वरो यस्य ह्युपदेशसुधा सुखे।
         शान्तो दान्तो महोदारो लोकानुग्रहकारकः।।
          अधर्मशमनं धर्मरक्षणं भुवि यद्व्रतम्।
           राधासर्वेश्वराख्यं तं शरणं च गुरुं भजे।।

   अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु निम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर श्रीराधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य श्री "श्रीजी" महाराज का जन्म विक्रम सम्वत् १९८६ वैशाख शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार दिनांक 10 मई 1929 में निम्बार्कतीर्थ सलेमाबाद निवासी गौड़ विप्र वंश में हुआ था। माता का नाम स्वर्णलता (श्रीसोनी बाई) तथा पिता का नाम श्रीरामनाथ जी शर्मा गौड़ इन्दोरिया था।  प्राक्तन पुण्य कर्मानुसार किसी भाग्यशाली दम्पति को ही ऐसे महापुरुषों का जन्म देने एवं लालन-पालन का सुयोग प्राप्त होता है। जिसमें महापुरुषों का आविर्भाव होता है, वह कुल परम पवित्र होता है। पूज्यश्री का बाल्यकालीन नाम "रतनलाल" था। कौन कह सकता था कि यह आगे चलकर एक महान रत्न सिद्ध होंगे।
       वि० सं० १९९७ आषाढ़ शुक्ल द्वितीय (रथयात्रा) तदनुसार दिनांक 7 जुलाई सन् 1940 में आपने श्रीनिम्बार्काचार्य पीठाधिपति अनंत श्रीविभूषित जगद्गुरु श्री "श्रीजी" श्री बालकृष्णशरण देवाचार्यजी महाराज के श्रीचरणकमलाश्रित हो विधिवत् वैष्णवी दीक्षा ग्रहण कर उक्त पीठ में ही युवराज पदेन होकर प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। पूज्यश्री के अध्ययनार्थ विरक्त वैष्णव ब्रह्मचारी पण्डित श्रीलाडिलीशरणजी काव्यतीर्थ को नियुक्त किया गया जो कि बड़े श्री श्रीजी महाराज के ही (कृपापात्र) शिष्य थे।
      वि० सं० २००० में अपने श्रीगुरुदेव के गोलोकस्थ हो जाने पर ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीय दिनांक 5 जून सन् 1943 में आप पीठासीन होकर श्रीवृन्दावन व्रजविदेही चतुः सम्प्रदाय श्रीमहन्त तर्क-तर्कतीर्थ न्याय वेदान्त भूषण श्रीधनञ्जयदासजी (कठिया बाबा) की देख-रेख में सुव्यवस्थित रूप से वि० सं० २००४ अर्थात् सन् 1948 पर्यन्त मन्दिर श्रीदावानलविहारी, दावानल कुण्ड, श्रीवृन्दावन में ही निवास करते हुए न्याय, व्याकरण-वेदान्त आदि का अध्ययन किया। 
    अध्ययन काल के अवसर में १४ वर्ष की आयु में ही पूज्यश्री ने कुरुक्षेत्र में होने वाले अ० भा० सन्त सम्मेलन में भाग लेकर सर्वसम्मति से अध्यक्ष पद को से समलंकृत किया। उस अवसर पर अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य श्री भारतीकृष्णतीर्थ जी महाराज श्रीगोवर्धन पीठाधीश्वर पुरी का भी पदार्पण हुआ था। उस समय आपको अध्यक्ष पद पर देख कर जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य जी ने अपने भाषण में सम्मान पूर्वक इन शब्दों में कहा था कि "आज हमें बाद ही गौरव है कि हम अपने साधु समाज के बीच जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्य जी को इस बाल्यकालिक स्वल्पावस्था में ही सभापति पद पर देख रहे हैं" आप लोग अवस्था पर कोई विचार न करें, तुलसी पत्र या शालिग्राम भगवान का श्रीविग्रह छोटा या बड़ा, किन्तु उसके महत्व में कोई अन्तर नहीं आता।
   इस प्रकार १४ वर्ष की अवस्था से ही आपने निज आराध्यदेव श्रीसर्वेश्वर प्रभु की सेवा एवं पर्रिकर सहित देश के विभिन्न भागों में परिभ्रमण कर तथा श्रीनिम्बार्काचार्य तीर्थयात्रा स्पेशल ट्रेन द्वारा तीनधाम सप्तपुरी की यात्रा और प्रयाग, हरिद्वार, नासिक तथा उज्जैन आदि स्थानों में कुंभ पर्वों पर निर्मित श्रीनिम्बार्कनगर द्वारा अखण्ड हरिनाम संकीर्तन श्रीरासलीला, श्रीरामलीला, सन्त-महन्त, विद्वानों के प्रवचन, भजन-संगीत, आदि विविध धार्मिक आयोजनों एवं अपने दिव्य आदेशों-संदेशों द्वारा भारतीय संस्कृति तथा वैष्णव धर्म की जागृति की है।
      विक्रम सम्वत् २०२६ तदनुसार सन् 1970 के फाल्गुन-चैत्र मास में आपने लगभग तीन हजार भक्तों के साथ श्रीव्रज चौरासी कोसीय पद यात्रा बड़े समारोह के साथ सम्पन्न की। यह यात्रा श्रीवृन्दावन वंशीवट से प्रारम्भ होकर वहीं आकर पूर्ण हुई। यात्रा करने वाले भक्तों का कहना था कि "न भूतो न भविष्यति" वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली ऐसी पद यात्रा हमने तो नहीं देखी। नगर-नगर, ग्राम-ग्राम में भक्तों का उत्साह, प्रेम तथा उनके द्वारा कृत स्वागत समारोह, शोभायात्रा आदि का अदृश्य अपूर्व था।
      आपने श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ में वि० सं० २०३१ में अ० भा० विराट सनातन धर्म सम्मेल किया जो कि बाद ही महत्वपूर्ण था। इसका अनुपम वर्णन विस्तृत रूप में प्रकाशित श्रीसनातन-धर्म-सम्मेलन स्मारिका में दृष्टव्य है। वि० सं० २०४७ में आपके तत्त्वावधान में युगसन्त श्रीमुरारी बापू की नव दिवसीय श्रीरामकथा का एक महत्वपूर्ण आयोजन हुआ था। विस्तृत विवरण श्रीरामकथा अंक में दृष्टव्य है। 
       वि० सं० २०५० में आपश्री के आचार्यपीठाभिषेक के अर्द्धशताब्दी पाटोत्सव स्वर्णजयन्ती महोत्सव के शुभावसर पर अ० भा० विराट सनातन धर्म सम्मेलन का वृहद आयोजन हुआ था। जिसका विस्तृत विवरण स्वर्ण जयन्ती स्मारिका में दृष्टव्य है। वि० सं० २०५३ में युगसन्त श्रीमुरारी बापू द्वारा श्रीव्रजदासी भागवत का विमोचन समारोह भी यहीं आचार्यपीठ में अत्यन्त हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न हुआ।
       इसी प्रकार आपके द्वारा अ० भा० श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ में ही श्रीपुरुषोत्तम मासीय आयोजनों पर श्रीमद्भागवत के अष्टोत्तरशत पाठ पारायण तथा श्रीसुदर्शन महायाग, श्रीगोपलयाग, श्रीमुकुन्द महायाग एवं श्रीरासलीला, श्रीरामलीला, संगीत समारोह भी बड़े समारोह पूर्वक सम्पन्न हुए हैं।
       वि० सं० २००० से २०५७ तक के आचार्यत्वकाल में भ्रमण द्वारा सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार ही नहीं अनेक धार्मिक स्थलों का निर्माण एवं जीर्णोद्धार भी आचार्यश्री के करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ है। मदनगंज का भव्य श्रीराधासर्वेश्वर मन्दिर, अजमेर में श्रीनिम्बार्ककोट का भव्य निर्माण, भगवान श्रीनिम्बार्क तपःस्थली निम्बग्राम में श्रीनिम्बार्क राधाकृष्णविहारीजी का प्राचीन मन्दिर के अतिरिक्त भव्य नूतन मन्दिर, श्रीपुष्करराज स्थित प्राचीन श्रीपरशुरामद्वारा का नवीन रूप द्वारा भव्य मंदिर का निर्माण, आचार्यपीठ के दोनों विद्यालयों के भवन, सत्संग कथा भवन, राधामाधव गोशाला, यज्ञशाला, औषधा, श्रीसर्वेश्वर उद्यान, आचार्यकक्ष, छात्रावास भवन, श्रीराधामाधव चौक, श्री स्वामीजी महाराज की तपःस्थली का नया प्रारूप, आचार्यपञ्चायतन स्थापना, बैंक तथा पोस्ट आफिस भवन, गंगासागर पर उद्यान श्री हनुमान मंदिर तथा भव्य अतिथि गृह, भव्य गोशाला, श्रीनिम्बार्कतीर्थ सरोवर तथा यमुनासागर की चहार दीवारी व सभा मंच का निर्माण, खातोली मोड़ श्रीनिम्बार्कतीर्थद्वार पर श्रीनिम्बार्कमारुति मन्दिर का निर्माण, श्री निम्बार्काचार्य राजकीय प्राथमिक विद्यालय भवन का निर्माण कर सरकार को प्रदान, झीतियां स्थान का श्रीगोपाल मंदिर का नव निर्माण, श्रीविजयगोपाल जी मन्दिर एवं श्रीनृसिंहजी मन्दिर निम्बार्कतीर्थ का जीर्णोद्धार, श्रीधाम वृन्दावन में श्री श्रीजी बड़ी कुञ्ज, पन्नाबाई वाली कुञ्ज, विहारघाट वाली अति प्राचीन कुञ्ज, राधा-सर्वेश्वरवाटिका, श्रीजी का पक्का बगीचा व अन्य सम्बंधित कुञ्जों में जीर्णोद्धार व निर्माण, हीरापुरा पावर हाउस के पास निम्बार्कनगर जयपुर में श्रीनिम्बार्कनिकुञ्जविहारीजी के मंदिर का भव्य नव निर्माण, श्रीगोपालद्वारा किशनगढ़ का जीर्णोद्धार, पण्डरपुर, महू आदि के नव निर्माण सम्बन्धी अनेक कार्य पूज्यश्री के आचार्यत्व काल मे सम्पन्न हुए हैं। सुदर्शनचक्रावतर आद्याचार्य श्रीनिम्बार्क भगवान के प्राकट्य स्थल महाराष्ट्र में पैठण समीप मूंगी ग्रामस्थ श्रीगोदावरी के पावन तटवर्ती अरुणाश्रम पर भव्यतम श्रीनिम्बार्क मन्दिर की नाव निर्माणाधीन योजना का शुभारम्भ भी सम्प्रदाय के लिए परम गौरवास्पद है।
         शिक्षा के क्षेत्र में आपके द्वारा श्री संस्कृत महाविद्यालय, श्रीनिम्बार्क दर्शन विद्यालय एवं वेद विद्यालय इन तीनों विद्यालयों का संचालन हो रहा है जिसमें विद्याध्ययन कर छात्र अनेक धार्मिक, सामाजिक व शैक्षणिक क्षेत्रों में प्रवेश कर अच्छे प्रतिष्ठित स्थानों पर रह जीविकोपार्जन कर रहे हैं। इन विद्यालयों में अध्ययन करने वाले छात्रों के आवास, भोजन, वस्त्र एवं पुस्तकों आदि का समस्त व्यय आचार्यपीठ वहन करती है।
    साम्प्रदायिक साहित्य के आविर्वर्द्धन में भी आपका योगदान महत्वपूर्ण है। आपके संरक्षकत्व में श्रीसर्वेश्वर प्रेस वृन्दावन में मासिक पत्र श्रीसर्वेश्वर एवं श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ निम्बार्कतीर्थ (श्री निंबार्क तीर्थ) से श्रीनिम्बार्क मुद्रणालय में श्रीनिम्बार्क धार्मिक पाक्षिक पत्र का नियमित प्रकाशन हुआ है एवं पूर्वाचार्यों द्वारा रचित अनेक ग्रंथों का प्रकाशन तथा वर्तमान आचार्यश्री द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों का प्रकाशन भी हुआ है तथा हो भी रहा है।

  रचनाएँ :

      आचार्यश्री ने स्वयं संस्कृत, हिंदी, बंगला एवं राजस्थानी आदि भाषाओं के विद्वान ही नहीं आयुर्वेद एवं संगीतकला के भी मर्मज्ञ हैं। संस्कृत एवं हिंदी दोनों भाषाओं में आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की है। आपके द्वारा विरचित श्रीनिम्बार्क भगवान कृत प्रातः स्तवराज स्तोत्र पर युग्मतत्त्वप्रकाशिका तथा पंचस्तवी श्रीयुगलगीतिशतकम्, उपदेश दर्शन, श्रीसर्वेश्वर सुधा बिन्दु, श्रीस्तवरत्नाञ्जलिः, श्रीराधामाधवशतकम्, श्रीनिकुञ्ज सौरभम्, हिन्दु संघटन, भारत-भारती-वैभवम्, श्रीयुगलस्तवविंशतिः, श्रीजानकीवल्लभस्तवः, श्रीहनुमन्महाष्टकम्, श्रीनिम्बार्कगोपीजनवल्लभाष्टकम्, भारत-कल्पतरु, श्रीनिम्बार्कस्तवार्चनम्, विवेक-वल्ली, नवनीतसुधा, श्रीसर्वेश्वरशतकम्, श्रीराधाशतकम्, श्रीनिम्बार्कचरितम्, श्रीवृन्दावनसौरभम्, श्रीराधासर्वेश्वरमंजरी, श्रीमाधवप्रपन्नाष्टकम्, छात्र-विवेक दर्शन, भारत-वीर-गौरव, श्रीराधासर्वेश्वरालोकः, श्रीपरशुराम-स्तवावली, श्रीराधा-राधना, मन्त्रराजभावार्थ-दीपिका आदि-आदि ग्रन्थ परम उपादेय एवं मनन करने योग्य हैं जो धार्मिक एवं भारतीय संस्कृति की विचारधाराओं के ग्रन्थ हैं।
       इस प्रकार इस दीर्घकालीन ५५ वर्ष के परिभ्रमण में सहस्रों ही कि संख्या में धर्मप्राण जनता ने आपसे शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर आपके दिव्य सदुपदेशों द्वारा अनुपम लाभ प्राप्त किया है।
       इस प्रकार पूज्यश्री के पीठासीन होने के पश्चात पूज्यश्री द्वारा आचार्यपीठ की सर्वतोमुखी समुन्नति हुई है, इसमें कोई संदेह नहीं। आपके द्वारा विरचित साहित्य पर तीन शोध-प्रबन्ध भी शोधकर्ता विद्वानों द्वारा लिखे जा चुके हैं।
    परम् पूज्य श्रीनिम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर श्री राधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य श्री "श्रीजी" महाराज के नित्यनिकुंजलीला में माघ कृष्ण पक्ष तृतीया वि0 सं0 2073 तदनुसार 14 जनवरी 2017 को प्रविष्ट कर हम सभी को छोड़ गौलोक को चले गए ।
!! जय राधामाधव !!


[ हर क्षण जपते रहिये ]

राधेकृष्ण राधेकृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे | राधेश्याम राधेश्याम श्याम श्याम राधे राधे ||


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