google.com, pub-8916578151656686, DIRECT, f08c47fec0942fa0 ३७) श्री हरिवंश देवाचार्य जी का जीवन चरित्र || Biography of Shri Harivansh Devachary Ji

३७) श्री हरिवंश देवाचार्य जी का जीवन चरित्र || Biography of Shri Harivansh Devachary Ji

श्री हरिवंश देवाचार्य जी का जीवन चरित्र

श्री हरिवंश देवाचार्य जी का जीवन चरित्र || Biography of Shri Harivansh Devachary Ji

    ( हितअलबेली सखी के अवतार )

          सर्वेश्वरं समाश्रित्य जीवा अभयमाप्तुयु: ।
          एवं  दिशन्  हरिवंशदेवाचार्यो  जयत्विह ।।  


      अखिल भारतीय श्रीनिम्बार्काचार्य पीठ निम्बार्क तीर्थ, श्री निम्बार्क तीर्थ के संस्थापक अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्य श्रीपरशुरामदेवाचार्य जी महाराज के पश्चात श्रीहरिवंशदेवाचार्य जी महाराज निम्बार्काचार्य पीठ पर आसीन हुए । विक्रम सम्वत् १६६४ से लेकर विक्रम सम्वत् १७०० तक आप आचार्य पीठासीन रहे । आप श्रीपरशुरामदेवाचार्य जी महाराज के शिष्यों में प्रमुख थे । आचार्यश्री से वैष्णवी दीक्षा लेकर तीर्थ में बहुत दिनों तक मंत्र - जप आदि निरंतर भगवत आराधना करते रहे । अंतर्यामी श्री श्रीराधासर्वेश्वर भगवान् की आंतरिक प्रेरणा अनुसार आपने दैवी जीवों को पाखंडी मतों से सावधान किया । जो कुछ मानसिक भाव उद्बुद्ध होते, उसी प्रकार वाणी से बोलते और तदनुसार शारीरिक क्रियाएं करते अत:
       " मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम् "

के आदर्श माने जाते थे । श्रीसर्वेश्वर प्रभु की आराधना में ही तन्मय रहने से जनता भी आपको तद्रूप ही देखती थी । आपके दर्शनमात्र से बहुत से सज्जन रसिक भक्त बन गए । बड़े-बड़े नास्तिक भी आदर्श आस्तिक बन गए ।
        कृष्णगढ़ नरेश महाराजा श्रीराजसिंह जी की राजकुमारी एवं महाराजा श्रीनागरीदास जी की लघु भतीजी श्रीसुंदरकुँवरी जी ने श्रीपरशुरामदेवाचार्य जी के प्रसंग में लिखा है - - -

      ऐसे  बहुत    प्रभाव    के     परशुरामजू       जान  ।
      जिनके मुख सिषि हुव सखी हित अलवेलिजू आन ।। 
      श्रीहरिवंश  सुदेव    सों   जग    आचार्य    सरूप   ।
      जिनतैं   निर   अन्तर   रहैं  जुगल  इच्छय  इन जूप ।।
                                              ( मित्रशिक्षा १७ वां विश्राम )

         जयपुर के विशिष्ट कविराज भट्ट पंडित श्रीमंडनजी ने परंपरागत श्रीहरिवंशदेवाचार्य जी महाराज की संक्षिप्त जीवनी का उल्लेख किया था । राजा - महाराजा द्वारा आमंत्रण आने पर श्रीहरिवंशदेवाचार्य जी श्रीनिम्बार्क तीर्थ एवं श्रीधाम वृंदावन को छोड़कर इधर - उधर नहीं आते - जाते थे । श्रीसर्वेश्वर प्रभु की आराधना में ही तल्लीन रहते थे, आप के शिष्य - प्रशिष्य भी अनेकों की संख्या में थे । उनमें श्रीनारायणदेवाचार्य जी प्रमुख थे । उन्होंने गोविंदकुंड ( आन्योर ) स्थित प्राचीन श्रीगोविंददेव मंदिर में अपने गुरुदेव श्री हरिवंशदेवाचार्य जी महाराज का अभूतपूर्व स्मृति - महोत्सव किया था, यह मंडनजी ने लिखा है - - - 

      परशुराम  महाराज  के, भये क्षदेव  हरिवंश ।
      तिनके  क्षनारायण  भये, देव  देव   अवतंश ।।
      गोविंद  गोवर्धन  निकट, राजत गोविंद कुंड ।
      तहां लाखन भेले किये, हरिदासन के झुण्ड ।।
      किये  नारायणदेव  ने, मेला  जग जस छाय ।
      धन  जामें दशवीश लख, दीन्हें तुरत लगाय ।।
                    ( भट्ट मण्डन कवि कृत जयसाह सुजत प्रकाश )

        आचार्यप्रवर श्रीहरिवंशदेवाचार्य जी महाराज विशेषत: श्रीधाम वृंदावन यहां से पधारते थे और अधिक समय वहां विराजते रहे हैं । आपकी श्रीधाम में अद्भुत निष्ठा थी । आपका तिरोधान भी श्रीधाम वृंदावन में ही हुआ । श्रीयमुना जी के तट पर विहार घाट वाली कुञ्ज जो आचार्यपीठ की समस्त कुञ्जों में अतिप्राचीन है ।वहीं पर आपकी समाधि वह चरण चरणपादुकाएं विद्यमान है ।

       श्रीनारायणदेवाचार्य जी ने निम्नांकित संस्कृत स्तव  द्वारा अपने गुरुदेव श्रीहरिवंशदेवाचार्य जी महाराज की जीवनी का दर्शन कराया है - - -

        हंसाय     हंस   भूपाय    हंसतत्त्वोपदेशिने   ।
        श्रीहरिवंशदेवाय     नमस्ते    युग्म - रूपिणे  ।। १ ।।
        हितवल्ली  महामाया  महेशी युग्म - रूपिणी ।
        राधाकृष्णात्मिका सेव्या सदा तस्यै नमोनमः ।। २ ।।
        पतितानां     पावनाय     सदाचार -  प्रवर्तिने ।
        सर्वभक्ताधिराजाय   श्रीहरिवंशाय  ते    नमः ।। ३ ।।
        भूमिपाषण्डनाशाय      प्रेमभक्ति  -  प्रवर्तिने ।
        महामोह    विनाशाय   हरिवंशाय  ते   नमः   ।। ४ ।।
        सनकादिस्वरूपाय     नमो    नारदरुपिणे     ।
        निम्बादित्याय।  चक्राय   हरिवंशाय   ते  नमः ।। ५ ।।
        अखंडमण्डलाचार्य   - वय् र्याय   महते  नमः ।
        नम:    प्रेम - समुद्राय    सूरये   गुरवे   नमः   ।। ६ ।।
        श्रीहंसव्यासरूपाय।       श्रीवृंदावनचारिणे    ।
       श्रीहरिवंशदेवाय      नमस्तेस्तु     भविष्णवे   ।। ७ ।।
        विरोधमतनाशाय      चाविरोध      प्रवर्तिने   ।
        चित्स्वरुपाय   नित्याय  हरिवंशराय  ते  नमः ।। ८ ।।

इति श्रीमन्नारायणदेवेन कृत श्रीहरिवंशदेवस्य स्तवं समाप्तम् ।
                        ( स्तव स्मरणी विक्रम संवत् १८५५ में श्रीराधिकादास लिखित )
          विक्रम संवत् १७०० तक आप जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्य पीठ पीठासीन रहे । श्रीहंस, सनकादि, श्रीनारद, श्रीनिम्बार्क, श्रीहरिव्यासदेव आदि सभी आचार्य - - -

आचार्य मां विजानीयान्नावमन्येत्कर्हिचित् ।
न  मत्र्यबुद्धया$सूयेत सर्वदेवमयो   गुरु: ।।

      - - के अनुसार श्रीभगवत्स्वरूप माने जाते हैं । सभी का आविर्भाव लोक हित के लिए होता है । आपके द्वारा भी अनुपम लोकहित हुआ है । स्वयं मधुर रस में सरावोर रहकर अधिकारी साधकों को आपने रसोपासना में प्रवृत्त किया । रहस्य परंपरा के हित अलबेली नाम से प्रख्यात है । आपका चरित्र अगाध है ।।
                         !! जय राधामाधव !!


[ हर क्षण जपते रहिये ]

राधेकृष्ण राधेकृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे | राधेश्याम राधेश्याम श्याम श्याम राधे राधे ||


Join Telegram

Post a Comment

0 Comments