( कुंकुमांगी सखी के अवतार )
अनन्त श्रीविभूषित जगद्गुरु निम्बार्काचार्य दिग्विजयी, प्रस्थानत्रयी-भाष्यकार श्रीकेशवकाश्मीरिभट्टाचार्य इस आचार्य परम्परा में श्रीहंस भगवान् से 33 वीं संख्या में श्रीनिम्बार्काचार्यपीठ पर विराजमान थे। आपका आविर्भाव तैलंग देशस्थ वैदुर्यपत्तन, मूंगी-पैठन, श्रीनिम्बार्काचार्यजी की वंश परम्परा में ही हुआ था। आपका स्थितिकाल 13 वीं शताब्दी माना जाता है। आपने भारत-भ्रमण कर कई बार दिग्विजय किया था। काश्मीर में अधिक निवास करने के कारण आपके नाम के साथ "काश्मीरि" विशेषण प्रसिद्ध हो गया था। काश्मीर में ही आपने वेदान्त सूत्रों पर "कौस्तुभ प्रभा" नामक विषद् भाष्य लिखा और उज्जैन में कुछ दिनों स्थाई निवास कर श्रीमद्भगवद्गीता पर "तत्व-प्रकाशिका-- नामक टीका" लिखी, भागवत में भी लिखी थीं, किन्तु उसमें "वेद स्तुति" वाला सन्दर्भ ही उपलब्ध है। इसी प्रकार आपका एक "क्रम-दीपिका" नामक ग्रन्थ भी है, जिसमें मन्त्रानुष्ठान का विधि पूर्वक वर्णन हैं। श्रीमद्भागवत् गीता एवं उपनिषदों पर भी आपकी विस्तृत संस्कृत टीका है।
आपका पाटोत्सव ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्थी को मनाया जाता हैं।
!! जय राधामाधव !!
[ हर क्षण जपते रहिये ]
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